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जेल अधीक्षक की मनमानी, बंदियों की परेशानी , बंदी किसे सुनाएं अपनी कहानी....

by admin@gmail.com on | 2024-11-23 14:00:42 Last Updated by admin@gmail.com on

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जेल अधीक्षक की मनमानी, बंदियों की परेशानी , बंदी किसे सुनाएं अपनी कहानी....

वाराणसी । नवीन मिश्रा अधिवक्ता शैलेंद्र पांडेय ने जिला जेल में विचाराधीन कैदियों से अवैध वसूली भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुये जेल अधीक्षक उमेश सिंह के खिलाफ  सीएम पीएम समेत कई लोगों से जेल में वसूली के खेल का खुलासा किया है ।  
 
शैलेंद्र पांडेय ने कहा कि जब भी कोई विचाराधीन बंदी न्यायिक अभिरक्षा में जेल में दाखिल किया जाता है उस वक्त उपरोक्त बंदियों को जिला कारागार वाराणसी की बैरक नंबर 10 में रखा जाता है जिसे जेल भाषा में आमदनी  बैरक कहा जाता है । और उनसे वसूली के लिए उनसे काम करवाया जाता है।अधिवक्ता ने लिखा है कि जिला कारागार वाराणसी में जेल अधीक्षक डॉक्टर आचार्य उमेश सिंह द्वारा अपना  खुद का जेल मैनुअल बनाया गया  जिसमे विचाराधीन बंदियों से कार्य ना करने आर्थिक स्थिति के हिसाब से या सोलह सौ या बाईस सौ रुपये वसूले जाते हैं। पैसे न देने पर नाली संडास सफाई से लेकर के आदेश  पर कहीं भी कार्य में लगा दिया जाता है।अधिवक्ता ने आगे  जेल अधीक्षक डॉक्टर आचार्य उमेश सिंह के ऊपर गम्भीर आरोप लगाते हुये कहा है जिला कारागार अधीक्षक उमेश सिंह ने एक सिद्धदोष बन्दी रामसूरत बिन्द को गांजे का ठेका दिया गया है और उसको आदेश है की वो  जेल के  किसी भी बैरक में खुलेआम गांजे का अवैध कारोबार कर चलता है। जिससे हर महीने अधीक्षक उमेश सिंह  ढाई लाख रुपये महीने वसूलते हैं। उन्होंने आगे कहा कि जेल अधीक्षक डॉक्टर आचार्य उमेश सिंह कैंटीन  ठेका सिद्धदोष बन्दी संजय को दिया है जो जेल के अंदर पान गुटखा सिगरेट बीड़ी सुर्ती और मनचाहे भोजन  पूड़ी पराठा  चाय मिठाइयाँ काफी बर्गर कोई भी चाइनीज आईटम दिया जाता है और बदले में अधीक्षक अस्सी हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से उससे वसूलते हैं। यही नही दो बैच में आये बंदियों के मुलाक़ातियो से 250 रुपए की वसूली होती है। 250 रुपये देकर पहले के मुलाकाती 1 घण्टे और मुलाकात करते हैं ।

  और बन्दियों को अपने परिजनो से बात करने के लिये जेल में जो पीसीओ की सुविधा दी जाती है। बन्दी की आर्थिक स्थिति देखकर उससे उसका फोन चालु कराने के नाम पर बन्दियों से सौ रुपए से           दो हजार रूपये तक वसूली होती है। इससे एक लाख रुपये प्रतिमाह वसूली होती है।

  शैलेंद्र पांडेय लिखते हैं कि अधीक्षक  द्वारा प्रत्येक बैरक में एक बैरक राइटर नियुक्त है | 
 प्रत्येक राइटर इस नियुक्ति के समय तीस हजार रूपये पहली बार  और फिर प्रतिमाह हर  राइटर पांच  हजार रूपये प्रतिमाह देना पड़ता है । और राइटरों को इसके बदले में बन्दी को रात्रि पहरा लगाने के नाम पर,बंदियों को सुलाने के नाम  पर मनचाहा धन वसूली कर सकते है।

   किसी बन्दी की यदि कोई पेशी अधीक्षक महोदय के समक्ष होती है | तो उसका तत्काल प्रभाव से दौरा खोल  दिया जाता है और वह दौरा तबतक नहीं रुकता है जबतक बन्दी के द्वारा किसी राइटर के माध्यम से पंद्रह से  बीस हजार रूपये अधीक्षक तक नहीं पहुंचाये जाते है। आरोप यह भी है कि बन्दियों को जो सरकारी भोजन भंडारे से दिया जाता है वह इतना घटिया होता है की उस भोजन को जानवर भी नही खा सकते ताकि बंदी अवैध कैंटीन का खाना मजबूरन खाएं।

यदि कोई बन्दी कितना भी बीमार हो जाये या बिमारी से तड़पता रहे उस बन्दी को उपचार हेतु बाहर  अस्पताल इलाज कराने हेतु नहीं भेजा जाता है जबतक की वो बन्दी अस्पताल के नाम पर पांच हजार रूपये अधीक्षक महोदय को अदा ना करदे भले ही उसकी मौत क्यों न हो जाये। और इस वजह से कई बन्दी अपनी जान गंवा चुके हैं। शैलेंद्र ने मामले की उच्चस्तरीय जांच करा के जेल अधीक्षक उमेश सिंह पर कार्यवाही की मांग की है।



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